खूंखार दलाल मुगराबी कौन थी जिसने इजरायल में बहाया खून ही खून, ब्लू लाइन से वह कनेक्शन जिससे भारत भी चिंतित

नई दिल्ली: 11 मार्च, 1978 को खूंखार आतंकी दलाल मुगराबी की अगुवाई में फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (PLO) के कुछ आतंकी लड़ाकों ने इजरायल के भीतर एक बड़े नरसंहार को अंजाम दिया, जिसमें 13 बच्चों समेत 37 इजरायलियों को जान गंवानी पड़ी थी। वहीं, 76 इ

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नई दिल्ली: 11 मार्च, 1978 को खूंखार आतंकी दलाल मुगराबी की अगुवाई में फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (PLO) के कुछ आतंकी लड़ाकों ने इजरायल के भीतर एक बड़े नरसंहार को अंजाम दिया, जिसमें 13 बच्चों समेत 37 इजरायलियों को जान गंवानी पड़ी थी। वहीं, 76 इजरायली घायल हो गए थे। जवाबी कार्रवाई में इजरायली सेना ने दक्षिणी लेबनान पर आक्रमण किया, जहां से 1970 के दशक के दौरान पीएलओ नियमित रूप से अपने आतंकी मिशनों को अंजाम देता था। मार्च 14-15 की दरम्यानी रात से शुरू होकर और कुछ दिनों बाद तक इजरायल रक्षा बल (IDF) के सैनिकों ने टायरे शहर और उसके आसपास के क्षेत्र को छोड़कर लेबनान के पूरे दक्षिणी हिस्से पर कब्जा कर लिया। यहीं से ब्लू लाइन की अहमियत शुरू हुई थी,जिसकी सुरक्षा को लेकर भारत भी चिंता जता चुका है। जानते हैं ब्लू लाइन और उसके विवाद की पूरी कहानी।

मुगराबी ने जब इजरायल की सड़कों पर बहाया खून

दलाल मुग़राबी दिखने में तो बेहद खूबसूरत थी, मगर वह बेहद खूंखार फ़िलिस्तीनी आतंकवादी थी। वह फ़िलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (पीएलओ) के फ़तह गुट की सदस्य थी। इसने 11 मार्च, 1978 को इजरायल के तटवर्ती इलाके में 11 लड़ाकों के साथ एक बड़े नरसंहार को अंजाम दिया था। दो बसों को उसने हाईजैक कर लिया था और उसे इजरायली शहर तेल अवीव की ओर ले जाने लगे। मकसद था ज्यादा से ज्यादा इजरायलियों को बमबारी और गोलीबारी से मारा जा सके। उस वक्त एक शांति वार्ता भी चल रही थी। इजरायली सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में मुगराबी समेत 9 आतंकी मारे गए थे। मुगराबी को इजरायल और संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवादी करार दिया है।
Dalal Mughrabi

क्या था ऑपरेशन लिटानी, इसका मकसद क्या था

इजरायली डिफेंस फोर्सेज ने इसके बाद एक ऑपरेशन चलाया, जिसे ऑपरेशन लिटानी के नाम से जाना जाता है। इसका मकसद लिटानी नदी के दक्षिण में लेबनान में पीएलओ के ठिकानों को साफ करना था। इस ऑपरेशन की वजह यह थी कि उत्तरी इजरायल को बेहतर ढंग से सुरक्षित बनाया जा सके और लेबनानी गृहयुद्ध में ईसाई लेबनानी मिलिशिया का समर्थन किया जा सके। इसी ऑपरेशन के बाद से लेबनान में हिजबुल्लाह का जन्म हुआ।
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जब लेबनानी सरकार पहुंची संयुक्त राष्ट्र

15 मार्च, 1978 को लेबनानी सरकार ने इजरायली आक्रमण के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कड़ा विरोध दर्ज कराया, जिसमें कहा गया कि उसका फिलिस्तीनी ऑपरेशन से कोई संबंध नहीं है। 19 मार्च, 1978 को परिषद ने संकल्प 425 को अपनाया, जिसमें उसने इजरायल से अपनी सैन्य कार्रवाई तुरंत बंद करने और सभी लेबनानी क्षेत्रों से अपनी सेना वापस बुलाने की अपील की। इसने लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल (UNIFIL) की भी स्थापना की। 23 मार्च 1978 को पहली UNIFIL सेना इस क्षेत्र में पहुंची।

क्या है ब्लू लाइन, किसने बनाई थी यह रेखा

इजरायल और लेबनान के बीच की एक अस्थायी सीमा, जिसे ब्लू लाइन के नाम से जाना जाता है। यह लाइन संयुक्त राष्ट्र की ओर से साल 2000 में उस वक्त निर्धारित की गई थी , जब इजरायल ने दक्षिणी लेबनान से अपनी सेना वापस बुला ली थी। यह कोई आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं बल्कि एक सीमांकन रेखा है। ब्लू लाइन की यह कहानी 104 साल पहले 1920 के दशक में उस वक्त शुरू होती है, जब ब्रिटेन और फ्रांस ने लेबनान, सीरिया और फिलिस्तीन के बीच यह रेखा खींची थी। तब इजरायल का जन्म भी नहीं हुआ था। UNIFIL इसकी कस्टोडियन है।
blue line


120 किलोमीटर लंबी है ब्लू लाइन

संयुक्त राष्ट्र की ओर से तय की गई रेखांकित ब्लू लाइन 120 किलोमीटर लंबी है। यह लेबनान को इजराइल और गोलान हाइट्स से अलग करती है। इसे संयुक्त राष्ट्र की ओर से 7 जून, 2000 को इस लाइन से यह तय किया गया कि इजरायल अब लेबनान से पूरी तरह से हट गया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और नाटो ने दक्षिणी लेबनान में स्थिति की निगरानी के लिए शांति सेना के रूप में लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल (UNIFIL) की स्थापना की।

2000 में यूएन ने तय की थी ब्लू लाइन

ब्लू लाइन 14 मार्च, 1978 से पहले आईडीएफ की तैनाती पर आधारित है। 1923 में 49 मील की सीमा पर 38 सीमा चिह्न लगाए गए थे। साल 2000 में यूएन ने ब्लू लाइन तय की। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 425 में चर्चा की गई लाइन के आधार पर संयुक्त राष्ट्र ने अपना सर्वेक्षण करेगा।
blue line and bombing on un


संकल्प 425 और ब्लू लाइन का कनेक्शन समझिए

UNIFIL की सहायता से संयुक्त राष्ट्र के मानचित्रकार और उनकी टीम ने इजरायल की वापसी की पुष्टि के व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए अपनाई जाने वाली एक लाइन की पहचान की। हालांकि, इस बात पर सहमति थी कि यह औपचारिक सीमांकन नहीं होगा। इसका मकसद लेबनान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मान्यता प्राप्त सीमा रेखा तय करना। 7 जून 2000 को ब्लू लाइन यानी वापसी रेखा को दर्शाने वाला पूरा नक्शा तैयार कर लिया गया। 16 जून को यूएन महासचिव ने सुरक्षा परिषद को बताया कि इजरायल ने संकल्प 425 (1978) के अनुसार लेबनान से अपनी सेना वापस हटा ली है। तब से संयुक्त राष्ट्र के सभी दस्तावेजों में इस रेखा को ब्लू लाइन कहा जाने लगा।

ब्लू लाइन तो है, मगर जब-तब खूनी संघर्ष भी

ब्लू लाइन को वास्तविक सीमा मानने के बाद भी यह सीमा विवाद बना हुआ है। लेबनान यह आरोप लगाता है कि इजरायल अभी भी लेबनानी भूमि पर कब्जा कर रहा है। अक्टूबर, 2023 तक अमेरिकी सरकार के अधिकारी अमोस होचस्टीन, जिन्होंने इजरायल-लेबनानी समुद्री सीमा विवाद को सुलझाने में मदद की थी, भूमि सीमा विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत कर रहे थे।

क्या ब्लू लाइन पर मौजूद है यूएन की शांति सेना

इजरायली सीमा से 30 किलोमीटर दूर ब्लू लाइन से सटे लेबनान के टायरे इलाके में शांति सेना मौजूद है। इसमें भारतीय सैनिक भी होते हैं। यहां पर हिजबुल्लाह की मौजूदगी नहीं है। टायरे से सिडॉन के बीच फिलिस्तीनी शरणार्थियों की बस्तियां हैं। यहां पर हिजबुल्लाह की मौजूदगी बड़ी संख्या में है।
blue line and un peace keeping forces


सीमा विवाद 13-14 पॉइंट्स पर होते रहते हैं

सीमा विवाद 13 और 14 पॉइंट्स पर होते रहते हैं, जिसमें गजर गांव, शेबा फार्म और कफरचौबा के आसपास की पहाड़ियां शामिल हैं। लेबनान के पूर्व राजदूत डोरोथी शीया ने कहा था कि बातचीत से कम से कम 7 विवादित पॉइंट्स का समाधान हो गया है। एक सेवानिवृत्त लेबनानी जनरल ने अधिकांश विवादित क्षेत्रों को कुछ सेंटीमीटर के लिए लड़ाई करार दिया था।

इजरायल ने खींच दी है 130 किमी लंबी कंक्रीट-स्टील की दीवार

सितंबर, 2018 तक इजरायल ने इजरायली समुदायों को हिजबुल्लाह आतंकवादियों की घुसपैठ से बचाने के लिए सीमांकन रेखा के इजरायली इलाके में 11 किलोमीटर की कंक्रीट इजरायल-लेबनान सीमा बना ली थी। बैरियर की लंबाई 130 किलोमीटर है। कंक्रीट की इस दीवार में स्टील की जाली, सेंसर और निगरानी कैमरे लगाए गए हैं।

विदेश मंत्रालय ने क्यों कहा-यूएन की पावनता का सम्मान हो

भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, संयुक्त राष्ट्र परिसरों की पवित्रता का सभी को सम्मान करना चाहिए और संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों की सुरक्षा और उनके कार्यक्षेत्र की शुचिता सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय किए जाने चाहिए।

दक्षिण लेबनान में 10 हजार शांति सैनिक तैनात हैं

दरअसल, हाल ही में दक्षिण लेबनान में संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय पर इजरायल रक्षा बलों के हमले में उसके दो शांति सैनिक घायल हो गए। इस हमले की व्यापक अंतरराष्ट्रीय निंदा हुई। इजरायल ने यह माना था कि उसकी सेना ने क्षेत्र में गोलीबारी की और यह सफाई की कि हिजबुल्लाह के आतंकवादी संयुक्त राष्ट्र चौकियों के पास सक्रिय थे। लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल या UNIFIL के पास दक्षिण लेबनान में लगभग 10,000 शांति सैनिक तैनात हैं। यूएन लगातार युद्धविराम की अपील कर रहा है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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